पानीपत के 22 साल पुराने दोहरे हत्याकांड में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने इस फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष अपनी बात साबित करने में असफल रहा और पर्याप्त साक्ष्य पेश नहीं कर सका। इस मामले में आरोपी पर साधु बाबा शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की बेरहमी से हत्या का आरोप था।
क्या है पूरा मामला?
यह घटना पानीपत के चंदौली गांव की है, जहां धार्मिक डेरे में साधु बाबा शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की हत्या की गई थी। दोनों के चेहरे तेजाब से जलाए गए थे और उनकी लाशें खेतों में पाई गई थीं। पुलिस को घटना के एक महीने तक कोई सुराग नहीं मिला। लेकिन 6 फरवरी 2003 को गांव के सरपंच रूप चंद और सुखबीर सिंह ने पुलिस को बताया कि आरोपी राजीव नाथ ने खुद यह बात कबूली थी कि उसने दोनों की हत्या की थी। राजीव गद्दी का वारिस बनना चाहता था, जबकि बाबा शिवनाथ यह गद्दी अपने शिष्य माया राम को सौंपना चाहते थे। इसी रंजिश के चलते राजीव ने दोनों की हत्या कर दी थी।
हाईकोर्ट का फैसला:
2004 में निचली अदालत ने राजीव को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन राजीव ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने मामले को एक अतिरिक्त न्यायिक कबूलनामे पर आधारित पाया, जिसे कानूनी दृष्टि से कमजोर सबूत माना। कोर्ट ने कहा कि यदि राजीव ने हत्या की होती, तो वह एक महीने बाद क्यों खुद सरपंच के पास जाकर अपनी गुनाहगार बात स्वीकार करता।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था, और पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथियार या तेजाब भी बरामद नहीं किया। ऐसे में सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामले को साबित करना असंभव था।
हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष राजीव के खिलाफ आरोप साबित करने में असफल रहा और इसलिए उसे संदेह का लाभ दिया गया। 22 साल बाद, राजीव को दोषमुक्त करार देते हुए उसे इस चर्चित हत्याकांड से मुक्त कर दिया गया।
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