राजस्थान में विधानसभा चुनाव में मुकाबला इस बार सियासी खानदानों के बीच भी देखने को मिलेगा। राजस्थान विधानसभा चुनाव में सियासत अब अपना असली रंग दिखाती नजर आयेगी। अपनों को ‘अपनों’ से लड़ाएगी। न भाई देखेगी और न पति।आपको बता दें कि राजस्थान के सियासी दंगल में हालात कुछ ऐसे नजर आ रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस नेता के खानदान की बहू रीटा सिंह ‘हाथ’ का साथ छोड़ अब जेजेपी के रथ पर सवार है तो वहीं दूसरी तरफ पूर्व में कैबिनेट मंत्री रह चुके अशोक बैरवा के सामने उनके ही भाई सुनील तिलकर ने अपने भाई के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
राजस्थान विधानसभा चुनाव से सियासत का असली चेहरा दिखाई देगा। कांग्रेस खानदान की बहु ने जेजेपी का हाथ थम लिया है। आपको बता दें की पहले रीटा सिंह सीकर की जिला प्रमुख रह चुकी हैं। उनके पति वीरेंद्र सिंह वर्तमान में दांतारामगढ़ से कांग्रेस विधायक हैं। रीटा के ससुर यानी वीरेन्द्र के पिता नारायण सिंह दांतारामगढ़ के कई बार विधायक रह चुके हैं। उनकी पहचान खांटी नेता की है। वे पीसीसी चीफ भी रह चुके हैं।
जेजेपी के चुनाव चिन्ह ‘चाबी’ की लोकप्रियता बढ़ाने में रीटा अब कहीं ट्रैक्टर रैली निकाल रही हैं तो कहीं पदयात्रा कर रही है। पूरे दांतारामगढ में जेजेपी का ट्रैक्टर घूम रहा है। वहीं वीरेंद्र सिंह रथयात्रा निकाल कर पत्नी के प्रचार अभियान की हवा निकालने में जुटे हैं। लेकिन जब लड़ाई अपनों से हो जाये तो चुनौतियां बढ़ ही जाती हैं। इसके चलते इस बार दांतारामगढ़ में मुकाबला चतुष्कोणीय होता दिख रहा है।
सीपीआई से पूर्व विधायक कामरेड अमराराम का चुनाव लड़ना तय है। पिछला चुनाव बहुत कम अंतर से हारी बीजेपी भी इस बार मैदान में पूरे दमखम से मैदान में उतरेगी। वहीं रीटा सिंह ने जेजेपी की चाबी से जीत उम्मीद के साथ ट्रैक्टर स्टार्ट कर अपने ही पति की मुश्किलें बढ़ा दी है। उनका इरादा हर हाल में पति के सामने मैदान में उतरने का है।
दांतारामगढ में जहां पति पत्नी आमने सामने होने की तैयारी में जुटे हैं तो वहीं सवाई माधोपुर की खंडार विधानसभा सीट पर भी मुकाबला रोचक होने के आसार हैं। यहां चार बार के विधायक और पूर्व में कैबिनेट मंत्री रह चुके अशोक बैरवा के सामने उनके ही भाई सुनील तिलकर टिकट की राह में रोड़ा बनकर खड़े हैं। सुनील तिलकर खुलकर अपने भाई के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। उन्हें नाकारा और निष्क्रिय विधायक करार देकर कांग्रेस का टिकट हासिल करने की जद्दोजहद कर रहे हैं।
बड़ा भाई अशोक लगातार विधायक बनता गया तो छोटे भाई से रहा नहीं गया। उसने सवाई माधोपुर से कांग्रेस के सभापति की टिकट मांगी। लेकिन जब अशोक बैरवा टिकट नहीं दिला पाये तो छोटे भाई सुनील ने अपने बड़े भाई के खिलाफ विद्रोह कर दिया। छोटे बेटे को पिता का भी साथ मिल गया है। बाप बेटे की जोड़ी अब विधायक अशोक बैरवा के टिकट पर संकट खड़ा कर सकती है।