चंडीगढ़। हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने समय पर ऋण की अदायगी न करने पर पंजाब नेशनल बैंक की एक शाखा के मैनेजर पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का फैसला सुनाया है। यह जुर्माना राशि मैनेजर के अप्रैल माह के वेतन में से काटी जाएगी।
इस संबंध में जानकारी देते हुए हरियाणा के सेवा का अधिकार आयोग के एक प्रवक्ता ने बताया कि आयोग के मुख्य आयुक्त श्री टी.सी. गुप्ता ने गत माह मार्च में मुख्यमंत्री अंत्योदय परिवार उत्थान योजना (एमएमएपीयूवाई) के लाभार्थियों के तीन मामलों की सुनवाई की थी जिसके तहत सिवानी से प्रार्थी ओमपति के मामले में स्वत संज्ञान लिया है।
इस मामले में बैंक द्वारा समय पर ऋण की अदायगी न करने पर पंजाब नेशनल बैंक, सिवानी, जिला भिवानी के ब्रांच मैनेजर अनुज वर्मा पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाने का निर्णय सुनाया है। आयोग ने अपने निर्णय में कहा है कि यह जुर्माना राशि ब्रांच मैनेजर के अप्रैल माह के वेतन में से काटी जाए और इस राशि को राज्य के खजाने में जमा करवाया जाए। इसके अलावा, आयोग ने निर्देश दिए हैं कि इस कटौती राशि की चालान रसीद आयोग को अगले 30 दिनों के भीतर प्रस्तुत कर जमा करवाई जाए।
इसी प्रकार, गांव विधवान से प्रार्थी कर्मवीर के मामले में ब्रांच मैनेजर अनुज वर्मा को चेतावनी जारी की गई है और निर्देश दिए गए हैं कि योजना के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री अंत्योदय परिवार उत्थान योजना (एमएमएपीयूवाई) के लाभार्थियों के मामलों को समय पर निपटाया जाए ताकि समय पर ऋण की अदायगी सुनिश्चित हो सकें। इसी तरह से गांव बिधवान से प्रार्थी राजेश के मामले को दाखिल कर दिया गया है क्योंकि राजेश के पास किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा है।
प्रवक्ता ने बताया कि आयोग ने इन मामलों में डिप्टी डायरेक्टर , पशुपालन विभाग, भिवानी को निर्देश दिए हैं कि डॉ राजकुमार बेनीवाल, एसडीओ, पशुपालन विभाग, सिवानी की तरफ से प्रस्तुत किए गए ओमपति द्वारा दिए गए बिना तारीख के पत्र की सत्यता की जांच करें और आयोग को 22 अप्रैल, 2024 तक इस संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। इसी तरह से एसडीओ, पशुपालन विभाग, सिवानी को आयोग की तरह से निर्देशित किया गया है कि दूसरी खरीद की प्रक्रिया को प्रारंभ करें ताकि बैंक द्वारा समय पर अदायगी की जा सकें।
गत वर्ष 6 अक्तूबर, 2023 को हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग के मुख्य आयुक्त की अध्यक्षता में एसएलबीसी और कुछ बैंकों के डीजीएम की बैठक में जब आयोग को यह पता चला कि हजारों मामलों में, बैंकों द्वारा समय पर ऋण नहीं दिया जा रहा है और सैकड़ों मामलों में मंजूरी और खरीद के बाद भी, बैंक ऋण का वितरण नहीं किया जा रहा है। तब यह निर्णय लिया गया कि जिन 100 मामलों में ऋण वितरण में अत्यधिक देरी हुई है, उनकी जांच कर आयोग द्वारा उचित कार्रवाई की जाएगी। उम्मीद है कि आयोग के इस निर्णय से कार्य में लापरवाही बरतने वाले बैंक अधिकारियों को सबक मिलेगा।