हिसार | हरियाणा विधानसभा चुनावों को गुजरे अब सात महीने हो चुके हैं। 8 अक्टूबर 2024 को जब भाजपा लगातार तीसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी, तो कांग्रेस के दावों, रणनीतियों और आत्मविश्वास की परतें खुलती चली गईं। माहौल अच्छा था, मुद्दे पक्ष में थे, लेकिन हार इतनी गहरी थी कि पार्टी अब तक उस झटके से उबर नहीं सकी है — और शायद उबरने की कोशिश भी नहीं कर रही।
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Toggleवो रिपोर्ट जो आई, मगर जनता तक कभी पहुँची नहीं
चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस ने अपने परंपरागत ढर्रे के अनुसार एक “पर्यवेक्षक दल” भेजा। हारने और जीतने वाले नेताओं से फीडबैक लिया गया, मीटिंग्स हुईं, नोट्स लिए गए, एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार की गई — लेकिन न तो उस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया, न ही उसके आधार पर कोई कार्रवाई।
पार्टी कार्यकर्ताओं के मन में सवाल अब भी तैर रहा है:
“अगर जवाबदेही तय नहीं होगी, तो बदलाव कैसे आएगा?”
प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष: कुर्सी की भूख में अटका फैसला
आज भी कांग्रेस हरियाणा में प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तय नहीं कर पाई है। गुटबाज़ी इतनी गहरी है कि हर धड़ा अपने नेता को ऊपर लाने में जुटा है। नतीजा – निर्णयहीनता, नेतृत्वहीनता और दिशा हीनता।
किसी ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली। किसी ने इस्तीफा नहीं दिया। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी खामोश है, जैसे सब कुछ ठीक चल रहा हो।
संगठन: 10 साल की उपेक्षा और आज की बर्बादी
हरियाणा कांग्रेस को आज जिस organizational collapse का सामना करना पड़ रहा है, उसकी बुनियाद पिछले एक दशक में ही रखी जा चुकी थी।
10 वर्षों से कोई स्थायी संगठन नहीं।
प्रदेशाध्यक्ष बदले, जिला अध्यक्ष नियुक्त नहीं हुए, कार्यकर्ता उपेक्षित रहे और सोशल मीडिया से लेकर बूथ स्तर तक कांग्रेस निष्क्रिय होती गई।
वरिष्ठ नेताओं ने बार-बार चेताया कि
“बिना संगठन के सिर्फ चेहरे चुनाव नहीं जिताते।”
लेकिन हर चेतावनी को अनसुना किया गया — और परिणाम अब सामने है।
निकाय चुनाव: हार के सिलसिले की अगली कड़ी
विधानसभा के बाद कांग्रेस को निकाय चुनाव में भी बड़ा झटका लगा। स्पष्ट था – हार सिर्फ एक चुनाव की नहीं थी, यह उस रणनीतिक और सांगठनिक दीवालियत का परिणाम थी जो वर्षों से भीतर ही भीतर पार्टी को खोखला कर रही थी।
एक सवाल, जो हर कांग्रेस कार्यकर्ता के मन में है: अब क्या?
हरियाणा में भाजपा की जीत कांग्रेस की हार नहीं थी, बल्कि कांग्रेस की अदृश्यता, गैर-जवाबदेही, और आत्ममुग्धता का परिणाम थी।
अगर कांग्रेस वास्तव में विपक्ष की भूमिका निभाना चाहती है तो उसे अब सिर्फ चेहरे नहीं,
सोच और संगठन को बदलना होगा।
जब भीतर से कमजोर हो विपक्ष, तो सत्ता बेखौफ हो जाती है।
हरियाणा में यही हुआ है। कांग्रेस को अब निर्णय लेना होगा —
या तो नेतृत्व बदले, या जनता विकल्प बदल देगी।
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