चंडीगढ़। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। अभी तक हुडा मामले में उनको राहत नहीं मिली थी की एक और मामले में उनका नाम दर्ज हो गया है। हरियाणा पुलिस ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े जमीन सौदे में कुछ बिल्डरों व स्वयं रॉबर्ट वाड्रा के नाम एफआईआर दर्ज की है।हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी इस मामले में आरोपित हैं। पुलिस ने इस मामले में पहले से दर्ज एफआईआर में भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 423 भी जोड़ दी है। ऐसे में अब पुलिस ने दावा किया है कि सौदे में बेइमानी हुई थी और इस पहलू की अब जांच की जा रही है।
धारा 423 क्या है ?
पुलिस द्वारा धारा 423 तब लगाई जाती है जब किसी भी व्यक्ति पर संपत्ति को लेकर कोई झूठा हस्तांतरण हो और उस पर गलत व धोखाधड़ी की नीयत से हस्ताक्षर किए गए हों। इस धारा में दो साल की सजा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रविधान है।
रॉबर्ट वाड्रा, भूपेंद्र हुड्डा समेत कई बिल्डरों पर दर्ज हुए थे केस
गुरुग्राम के खेड़की दौला थाने में एक सितंबर 2018 को दर्ज एफआईआर नंबर 288 में रॉबर्ट वाड्रा व भूपेंद्र सिंह हुड्डा समेत कई बिल्डरों को आरोपित बनाया गया है। इस एफआईआर में आईपीसी की धारा 420, 468, 471, 120-बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत मामला दर्ज है। इस एफआईआर में जांच एजेंसी ने 16 जनवरी को नए आरोप जोड़े हैं।यह जानकारी हरियाणा के आईजी (क्राइम) कुलविंदर सिंह ने शुक्रवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट को दी है। एक सितंबर 2018 को दर्ज एफआइआर में बिल्डर डीएलएफ, ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज और वाड्रा की स्काईलाइट हास्पिटेलिटी के नाम भी शामिल हैं।
रॉबर्ट वाड्रा पर क्या है आरोप?
एफआईआर में आरोप है कि रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हास्पिटेलिटी ने फरवरी 2008 में गुरुग्राम के शिकोहपुर में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से 7.5 करोड़ रुपये में विवादास्पद 3.5 एकड़ जमीन खरीदी थी और वाणिज्यिक लाइसेंस प्राप्त करने के बाद उसी संपत्ति को 58 करोड़ रुपये में डीएलएफ को बेच दिया था।
ऐसे आया भूपेंद्र हुड्डा का नाम
बदले में तत्कालीन हुड्डा सरकार ने डीएलएफ को गुरूग्राम के वजीराबाद में 350 एकड़ जमीन आवंटित की थी। यह मामला 2014 के चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दा बना था। उस समय भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को निशाना बनाते हुए वाड्रा सौदे को भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित किया था। इस मामले की एसआइटी द्वारा जांच की जा रही है, जिसमें एक पुलिस उपायुक्त (डीसीपी), दो सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी), एक इंस्पेक्टर और एक एएसआइ शामिल है।