📍 पानीपत (हरियाणा)।
थर्मल पावर स्टेशन और सीमेंट फैक्ट्री के धुएं और धूल में घिरे एक गांव की सच्चाई सोचने पर मजबूर कर देती है। पानीपत जिले के नजदीक बसा खुखराना गांव आज भी 21वीं सदी के भारत में जीने की बुनियादी लड़ाई लड़ रहा है — और इस लड़ाई का सबसे करुण पक्ष है यहां के नौजवानों की शादी न हो पाना।
शादी नहीं, बीमारी और प्रदूषण की चर्चा
इस गांव के युवाओं के लिए शादी महज एक सपना बनकर रह गई है। यहां के परिवारों को रिश्ते मिलना लगभग असंभव हो गया है, क्योंकि बाहर के लोग इस गांव की भयावह पर्यावरणीय स्थिति से वाकिफ हो चुके हैं। कोई भी अपनी बेटी ऐसे गांव में नहीं देना चाहता, जहां हर दूसरा व्यक्ति त्वचा रोग, अस्थमा, या टीबी जैसी बीमारियों से जूझ रहा हो।
गांव के इर्द-गिर्द बना ‘जहरीला घेरा’
खुखराना गांव थर्मल पावर स्टेशन के पास स्थित है और महज कुछ सौ मीटर की दूरी पर एक सीमेंट प्लांट भी है। दोनों औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाली राख, धूल और जहरीली गैसें इस इलाके की हवा में जहर घोल रही हैं। लोगों का सांस लेना दूभर हो गया है।
स्थानीय निवासियों के मुताबिक, गांव की 90% से अधिक आबादी त्वचा और सांस संबंधी बीमारियों से प्रभावित है। खासकर बुजुर्गों और बच्चों की हालत बेहद खराब है।
भूमिगत जल भी नहीं रहा शुद्ध
थर्मल पावर स्टेशन से निकलने वाली राख को ऐश पॉन्ड (राख की झील) में जमा किया जाता है। इससे पानी जमीन में रिस कर भूमिगत जल को प्रदूषित कर रहा है। कई जगह भू-धंसान की घटनाएं भी सामने आई हैं। पीने का पानी तक दूषित हो चुका है, जो कई नई बीमारियों को जन्म दे रहा है।
2012 में मिली थी राहत की उम्मीद, अब भी अधूरी
वर्ष 2012 में सरकार ने गांव को दूसरी जगह स्थानांतरित करने का आदेश तो दिया, लेकिन यह फैसला कागज़ों में ही दबकर रह गया। नई जगह भी तय हो चुकी है, परन्तु सरकारी निष्क्रियता और आपसी विवादों के कारण आज तक एक भी परिवार वहां नहीं जा पाया।
“हम कब तक जहर में जिएंगे?” – ग्रामीणों की पीड़ा
गांव के लोगों ने बार-बार प्रशासन से गुहार लगाई है कि या तो प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए या गांव को शीघ्र स्थानांतरित किया जाए। उनका कहना है कि सिर्फ सरकारी नौकरी करने वाले लड़कों की ही शादियां हो पा रही हैं, बाकी युवाओं का भविष्य अधर में लटका है।
विकास बनाम जीवन – एक खुला सवाल
खुखराना गांव की कहानी हरियाणा में हो रहे औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के टकराव की एक जीवंत मिसाल है। यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो यह गांव केवल एक पर्यावरणीय त्रासदी नहीं, बल्कि सामाजिक विघटन की गाथा बन जाएगा।
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