अलख हरियाणा || मीडिया में आपको रोज कांग्रेस की गुटबाजी की खबरें की भरमार देखने को मिलेंगी। लेकिन बीजेपी की भयंकर गुटबाजी का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलेगी। कमाल की बात ये है कि कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी… अकेले-अकेले नेता हैं। सिर्फ कुमारी सैलजा के साथ इक्का-दुक्का विधायक हैं। ना उनके साथ पार्टी का कोई बड़ा नेता है, ना कोई विधायक, ना सांसद और ना ही टिकट की चाह रखने वाले नेताओं का जमावड़ा… बावजूद इसके मीडिया में इन नेताओं को बार-बार गुट की तरह गिनवाया जाता है।
जबकि बीजेपी के बारे में ऐसा कहते हुए मीडिया का हलक सूख जाता है। कहने को हरियाणा में मुख्यमंत्री खट्टर सरकार चला रहे हैं, पार्टी के कर्ताधर्ता है, लेकिन अगर कांग्रेस वाले पैमाने बीजेपी पर लागू किए जाएं तो खट्टर सिर्फ एक गुट के नेता हैं। मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द रहने वाले या यूं कहें सीएम के कुछ खास व्यक्ति ही उनके गुट का हिस्सा है। पार्टी की इस गुटबाज़ी ने कई विधायकों, मंत्रियों, सांसदों, पूर्व विधायकों को हासिए पर डाल रखा है।
आज की खास रिपोर्ट में बीजेपी की गुटबाज़ी का ही पर्दाफाश करेंगे।
शुरुआत ऐसी बयानबाज़ी से जो कांग्रेस में कभी देखने को नहीं मिली। कांग्रेस की सिर्फ दो नेता ही पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बोल रही हैं। लेकिन उनके बयान हमेशा सभ्य और मीडिया में छापने लायक होते हैं। लेकिन बीजेपी के नेता तो सरेआम एक दूसरे को मां-बहन की गालियां देते हैं। इतनी बुरी तरह गालियां कि मीडिया वाले चाहकर भी छाप नहीं सकते। पिछले दिनों रोहतक के सांसद अरविंद शर्मा ने पूर्व मंत्री और खट्टर के खास मनीष ग्रोवर को मीडिया के सामने सरेआम गाली दी। इससे पहले भी शर्मा ग्रोवर पर भद्दी टिप्पणियां कर चुके हैं। उन्होंने खट्टर सरकार में सैंकड़ों करोड़ के अमृत घोटाले के आरोप भी लगाए।
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत का गुट बीजेपी की सरकार में मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही नाराज चल रहा है। राव इंद्रजीत सार्वजनिक मंचों से खट्टर सरकार पर असहज करने वाली टिप्पणी कई बार कर चुके हैं। लेकिन उनके गुट की खट्टर गुट के साथ खींचतान कभी मीडिया में सुर्खियां नहीं बनती।
दक्षिण हरियाणा की राजनीति में कुछ दिन पहले ही सक्रिय हुए राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव भी नए गुट की तरह काम कर रहे हैं। जब गुजरात और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बदले गए तो हरियाणा में खूब चर्चाएं हो रही थीं कि खट्टर को बदलकर भूपेंद्र यादव को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
2014 से पहले पार्टी के स्टार कैंपेनर, दलित नेता और अंबाला से सांसद रतन लाल कटारिया बोलते-बोलते चुप हो गए हैं यानी उन्हें भी साइडलाइन कर दिया गया है… लंबे समय से वो कहीं सक्रिय नजर नहीं आ रहे है।
बीजेपी में एक गुट ओपी धनखड़ का है। प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ की विधानसभा चुनाव में इतनी बड़ी हार के कारण और खट्टर के साथ उनके संबंधों के बारे में राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं होती ही रहती हैं।
बीजेपी में गृह और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का अपना गुट है। कुछ नेता विज के दरबार में अक्सर हाजिरी लगाते दिखाई देते हैं। अनिल विज और सीएम मनोहर लाल खट्टर में तनातनी कई बार दिखाई दे चुकी है। शराब घोटाले से लेकर धान घोटाले और भर्ती घोटाले में अनिल विज की सरकार से अलग लाइन ने कई बार सरकार को संकट में डाला है।
बीजेपी में एक गुट चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे बृजेंद्र सिंह का है। किसान आंदोलन से लेकर कुलदीप बिश्नोई की बीजेपी में एंट्री तक… जाने कितने ही मौकों पर बीरेंद्र सिंह बीजेपी सरकार की किरकिरी करवा चुके हैं।
इन सब गुटों के अलावा, एक गुट प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनवाने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा का है। मनोहर लाल खट्टर से कहीं ज्यादा शर्मा सीएम पद के दावेदार थे। लेकिन जैसे ही खट्टर को किस्मत का साथ मिला तो उन्होंने धीरे-धीरे रामबिलास शर्मा के पर कतरने शुरू कर दिए। आज बीजेपी के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले रामबिलास शर्मा पूरी तरह हासिए पर हैं।
शर्मा की तरह कैप्टन अभिमन्यु, विपुल गोयल, राव नरबीर सिंह समेत कई नेताओं के अपने अपने गुट हैं, जो सक्रिय राजनीति से लापता कर दिए गए हैं।
इनके अलावा जो नेता एक से ज्यादा बार विधायक बन चुके हैं, बावजूद इसके उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया… उनका अपना गुट है। सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों का अपना गुट है। सरकार की सहयोगी जेजेपी के भीतर भी 4 गुट हैं। एक दुष्यंत समर्थक गुट, एक खट्टर समर्थक गुट, एक मंत्री ना बनाए जाने की वजह से नाराज गुट और एक भविष्य में राजनीति को बचाए रखने के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नजदीकियां बढ़ाने की जुगत में जुटा हुआ गुट।
अगर बीजेपी और बीजेपी सरकार की गुटबाज़ी को देखें तो कांग्रेस की गुटबाज़ी इसके सामने कुछ भी नहीं है। लेकिन मीडिया में बीजेपी की गुटबाज़ी पर चर्चा करना मना है… क्योंकि देश में इन दिनों सिर्फ विपक्ष को टारगेट करना ही पत्रकारिता है।