एक गांव… एक गोदाम… एक पुराना रिश्ता… और एक रात जो सब कुछ खत्म कर गई।
जींद के निर्जन गांव में कभी भाईचारे के धागे इतने मजबूत थे कि दोहते को बेटा मानकर गोद ले लिया गया था। चार पीढ़ियों तक यह अपनापन चलता रहा — एक ही गांव में, एक ही विरासत के साथ। लेकिन वक्त ने करवट ली, और भाईचारे के धागे लालच की कैंची से कटते चले गए।
जब जमीन ने रिश्ते तोड़ दिए
जिस जमीन की कोई खास कीमत नहीं थी, वही जमीन जब 8 करोड़ प्रति एकड़ हो गई, तो उसकी चमक ने खून से गहरे रिश्तों को धुंधला कर दिया। सतीश और दिलबाग — दो सगे भाई जिन्होंने गैस एजेंसी और कॉलोनी बसाई — और दूसरी ओर सुरेश, जो उसी जमीन तक रास्ता पाने के लिए सालों से संघर्ष कर रहा था।
रास्ते की लड़ाई कोर्ट तक पहुंची, प्रशासन ने हस्तक्षेप किया, गली बनवाई गई — लेकिन यह गली अब सुलह की राह नहीं, कत्ल की ओर जाने वाला रास्ता बन चुकी थी।
8 अप्रैल की रात: धूल उड़ी, खून बहा
शाम को जब सुरेश का बेटा मोहित तेज़ गाड़ी चलाता हुआ गैस एजेंसी के पास आया, तो उड़ी धूल ने जैसे चिंगारी का काम किया। “धीरे चला, धूल उड़ रही है” — बस यही शब्द विवाद की आखिरी शुरुआत बन गए। कहासुनी हुई, हाथापाई हुई, और रात डेढ़ बजे — जब सब सो रहे थे — दो लोग जिंदा जलते गुस्से की लपटों में झुलस गए।
मोहित और लक्ष्य गोदाम में घुसे और दो-दो गोलियां सतीश और दिलबाग के शरीर में उतार दीं। गोलियां इतनी पास से मारी गईं कि शरीर के आर-पार हो गईं।
पोस्टमॉर्टम से उजागर हुआ भयावह सच
डॉक्टरों ने साफ कहा — यह गोलियां नफरत की नज़दीकी से निकली थीं। शरीर पर मांस के टुकड़े मिले, गोलियों के छेद चीख रहे थे कि यह हत्या नहीं, पुरानी साज़िश का अंजाम थी।
तीन गिरफ्तार, कई सवाल बाकी
सुरेश, मोहित और लक्ष्य — तीनों गिरफ्तार। दो सरकारी मुलाजिम — एक सिंचाई विभाग में, एक रोडवेज स्टोरकीपर। लेकिन कहानी वहीं खत्म नहीं होती।
मृतकों के परिजन कहते हैं — इस कत्ल की जड़ें गहरी हैं। सुरेश की पत्नी, रणबीर — सब शामिल हैं। उन्होंने SP से मांग की है:
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केस की जांच किसी ईमानदार वरिष्ठ अधिकारी को सौंपी जाए।
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गैस एजेंसी फिर से खोली जाए, ताकि लोग परेशान न हों।
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सुरेश द्वारा हड़पे 1.30 करोड़ रुपए की जांच हो।
यह कहानी सिर्फ एक डबल मर्डर नहीं है — यह चेतावनी है कि जब जमीन की कीमत रिश्तों से ऊपर हो जाए, तब खून सस्ता हो जाता है।