प्रदेश सरकार व प्रदेश के शिक्षामंत्री ने एक षड्यंत्र के तहत कार्रवाई करते हुए सेवानिवृत्ति के दिन उनकी सेवाएं बर्खास्त करने के आदेश जारी किए हैं। सरकार के इन आदेशों को वह पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। राजकीय महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर सुभाष सपड़ा का कहना है कि राजकीय महाविद्यालय सेक्टर-14 में चल रही अनियमितताओं के खिलाफ वर्ष 2005 की 16 दिसम्बर को आवाज उठाने पर उनके खिलाफ एक सप्ताह बाद ही झूठी एफ.आई.आर. दर्ज करवा दी गई थी।
जिसमें सेक्टर-9 राजकीय महाविद्यालय की एक छात्रा द्वारा आरोप लगाया गया था कि घर पर ट्यूशन पढ़ाने के दौरान उन्होंने उसके साथ छेड़छाड़ की थी। कुछ छात्रों द्वारा उनसे फिरौती की मांग भी की गई थी। उन्होंने इनके खिलाफ शहर थाना पुलिस में मामला भी दर्ज करवाया था। प्रो. सपड़ा का कहना है कि प्रदेश के उच्चतर शिक्षा विभाग को भी शिकायत दी गई थी।
शिक्षा विभाग ने कालेज प्राचार्य को उनके खिलाफ चार्ज फ्रेम करने के लिए कहा था। प्राचार्य ने कालेज के बाहर का मामला होने के कारण इसमें हस्तक्षेप नहीं किया था और शिक्षा विभाग से आग्रह किया था कि विभाग ही अपने स्तर पर कार्रवाई करे। शिक्षा विभाग ने इस मामले की जांच को बंद कर दिया था। वर्ष 2007 में शिक्षा विभाग में की गई शिकायत के आधार पर इस मामले की फिर से जांच शुरू हो गई थी। विभाग के अतिरिक्त निदेशक महावीर सिंह को यह जांच सौंपी गई थी। उनके पक्षपाती रवैये को देखते हुए उन्होंने जांच अधिकारी बदलने की प्रार्थना विभाग से की थी। विभाग ने उनकी बात को मानते हुए सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी आर.के. तनेजा को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया था।
विभाग के मुख्य सचिव ने जांच के दौरान आर.के. तनेजा को पैनल से हटा दिया था लेकिन आर.के. तनेजा ने सबूतों के अभाव में उन्हें आरोपी करार दे दिया था। इसी दौरान अदालत में चल रहे मामले में तत्कालीन ज्यूडीशियल मैजिस्ट्रेट मीनाक्षी यादव की अदालत ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। इसकी सूचना उन्होंने विभाग को भी दे दी थी। उन पर लगे आरोपों की जांच विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव विजयवर्धन ने व्यक्तिगत सुनवाई के दौरान की थी, लेकिन उनके खिलाफ कोई आदेश जारी नहीं किया था।
इसी पद पर डा. महावीर सिंह ने कार्यभार ग्रहण कर लिया था और उन्होंने पूर्वाग्रह से उनके खिलाफ वर्ष 2017 की 9 फरवरी को प्रस्ताव पारित कर दिया और प्रदेश के शिक्षामंत्री रामबिलास शर्मा से भी स्वीकृति ले ली। विभाग ने प्रदेश के पब्लिक सॢवस कमीशन को इस प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए भेजा लेकिन कमीशन ने मंजूरी नहीं दी। इस स्थिति को देखते हुए उन्होंने उच्च न्यायालय की शरण ली। उच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 की 11 जुलाई को विभाग के आदेश पर रोक लगा दी। विभाग उनके खिलाफ कार्रवाई करने से पीछे नहीं रहा और स्थगन आदेश को तोडऩे के लिए उच्च न्यायालय से आग्रह करता रहा। गत माह 14 मई को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने उनके पक्ष में स्थगन आदेश जारी करने के आदेश दिए और अगली सुनवाई के लिए 14 अगस्त की तारीख निर्धारित कर दी थी।
विभाग ने उच्च न्यायालय की डबल बैंच में अपील कर दी। आनन-फानन में उन्हें 30 मई की रात्रि में 31 मई को सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय में उपस्थित होने की सूचना भिजवाई। उच्च न्यायालय की डबल बैंच ने 31 मई को ही इस मामले में 2 आदेश जारी किए। एक आदेश में बिना सुनवाई किए ही अदालत ने स्थगन आदेश को 290 दिन की देरी के लिए सरकार को माफी दे दी और स्थगन आदेश रद्द कर दिया गया तथा उनकी नौकरी बर्खास्तगी के आदेश भी उनके घर भिजवा दिए।
उन्होंने शिक्षा विभाग व शिक्षामंत्री तथा अन्य उच्चाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचकर सेवानिवृत्ति के दिन ही उन्हें बर्खास्त करने के आदेश जारी कर सभी कायदे-कानूनों को ताक पर रख दिया है। अधिकारियों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए उन्हें हर स्तर पर प्रताडि़त करने की कोशिश की है। वह न्याय की लड़ाई अवश्य लड़ेंगे। हालांकि, यह लड़ाई बहुत कठिन है और सीधे प्रदेश सरकार व प्रदेश सरकार के मंत्री तथा उच्चाधिकारियों से है। उनके साथ उनके अधिवक्ता भी प्रेस वार्ता में शामिल थे।