नेता प्रतिपक्ष के बिना संवैधानिक नियुक्तियां कैसे करें?
हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति ने राज्य सरकार के सामने एक बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सरकार राज्य में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं कर पा रही, क्योंकि RTI एक्ट के तहत ये नियुक्तियां एक चयन समिति के जरिए होती हैं, जिसमें नेता प्रतिपक्ष का होना अनिवार्य है।
अब तक क्या हुआ है?
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राज्य में कांग्रेस हाईकमान ने 6 महीने से नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं किया है।
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मुख्य सूचना आयुक्त और 7 सूचना आयुक्तों की नियुक्ति रुकी हुई है।
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इससे RTI एक्ट के तहत अपीलें और शिकायतें अटक गई हैं।
किन पदों पर नियुक्ति अटकी है?
वर्तमान में हरियाणा में केवल 3 सूचना आयुक्त (जगबीर सिंह, प्रदीप कुमार शेखावत और कुलबीर छिकारा) काम कर रहे हैं। जबकि मुख्य सूचना आयुक्त सहित 8 पद खाली पड़े हैं।
🔸 सूचना आयुक्त: 7
🔸 मुख्य सूचना आयुक्त: 1
इन पदों के लिए नियुक्ति न होने से 7200 से अधिक RTI मामलों की फाइलें पेंडिंग हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही प्रभावित हो रही है।
कानून क्या कहता है?
RTI Act, 2005 की धारा 15(3) के अनुसार:
राज्य के सूचना आयुक्तों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय समिति करती है, जिसमें नेता प्रतिपक्ष अनिवार्य सदस्य होता है।
क्या सरकार नियमों को बाइपास कर सकती है?
मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा है कि:
“हम एडवोकेट जनरल से कानूनी सलाह ले रहे हैं कि विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति में नियुक्तियों को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।”
सरकार झारखंड के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उदाहरण बना रही है। वहां भाजपा नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं कर रही थी। कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर नेता प्रतिपक्ष बनाने का आदेश दिया था।
कांग्रेस क्या कर रही है?
कांग्रेस हाईकमान ने विधानसभा चुनाव में हार के बाद संगठन को प्राथमिकता दी है। पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति अभी टाल रखी है। सूत्रों के अनुसार, जल्दबाजी में किसी नाम पर मुहर लगने की संभावना नहीं है।
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