पानीपत : आगामी सत्र में संसद में एक बार फिर किसानों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाएंगे और पहले की तरह देश की सबसे बड़ी पंचायत में किसानों की आवाज़ गूंजेगी। किसानों की सात महीने की तपस्या बेकार नहीं जायेगी, सरकार को किसानों की मांगें माननी ही पड़ेगी। आज पानीपत टोल प्लाजा पर धरनारत किसानों की बीच पहुंचकर उनका समर्थन किया और आंदोलन के दौरान कुर्बानी देने वाले किसानों को श्रद्धांजलि दी। ऐसा लगता है कि सरकार की रणनीति है कि किसानों को इतना परेशान कर दो कि वे दुःखी होकर धरनास्थल से लौट जाएं। लेकिन, ये सरकार की गलतफहमी है। किसान जहां डटा है वहीं डटा रहेगा, पीछे बिल्कुल नहीं हटेगा।
सरकार किसान आंदोलन की गंभीरता को समझे और किसान संगठनों से बिना शर्त तुरंत बातचीत शुरू कर समाधान निकाले। किसान पिछले सात महीनों से शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से पूरी एकजुटता के साथ कठोर परिस्थितियों का सामना करते हुए देश का सबसे बड़ा आंदोलन चला रहे हैं। लेकिन सरकार किसानों की आवाज़ नहीं सुन रही है। सरकार किसानों की मांग मानने की बजाए लगातार उनकी आवाज़ दबाने की कोशिश कर रही है। मुझे इस बात की भी पीड़ा है कि सरकार अन्नदाता की क़ुर्बानियों के प्रति संवेदनहीन बनी हुई है। सरकार किसानों को डराने की बजाय मनाने की कोशिश करे। सरकार ये ग़लतफ़हमी अपने मन से निकाल दे कि वो किसानों की मांगें भी नहीं मानेगी और किसानों को डराने में भी सफल हो जायेगी।