CM मनोहरलाल खट्टर के मन्नू से मनोहर लाल तक का सफर दरअसल आज डॉक्टर अनुज नरवाल रोहतकी आज अपने स्पेशल प्रोग्राम “ एक नेता की कहानी” में लेकर आये हैं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कहानी। कहने वाले उनको भले ही किस्मत का धनी कहे या फिर पैराशूट से उतरा हुआ मुख्यमंत्री, लेकिन खेतों की इन पगडंडियों से लेकर कबीर कुटिया तक का सफर इस बात का गवाह है कि उन्होंने कितनी जद्दोजहद के बाद ये मुकाम पाया है।
सीएम मनोहर लाल का बचपन बनियानी गाँव के गली कूचों से होकर गुज़रा है।मनोहर लाल अभी दुनिया में आये भी नहीं थे कि उनके परिवार के लिए संघर्ष का दौर शुरू हो गया था। जब 1947 में हिन्दुस्तान दो हिस्सों में तकसीम हो गया था तब खट्टर परिवार के सामने दो विकल्प थे – भारत या फिर पकिस्तान। परिवार ने पाकिस्तान के हिस्से में आये झंग जिले को छोड़कर भारत आने का फैसला लिया। शुरुवाती दिनों में खट्टर परिवार हरियाणा सूबे के रोहतक जिले के निन्दाणा गाँव में बस गया। . लेकिन उनके आगे अब संकट रोजगार था। उनके पास न तो कोई जमा पूंजी थी, न ही कोई कमाई का साधन। पिता हरबंस लाल और दादा भगवान दास मजदूरी कर जैसे तैसे गुजारा करने लगे। इस दौरान उन्होंने कुछ पैसे जोड़कर निन्दाणा गांव में ही किरयाने की दुकान खोल ली।
5 मई 1954 को जन्में मनोहर लाल, परिवार के लिए लक्की साबित हुए। उसी दौरान परिवार को रोहतक जिले के मदीना गाँव में जमीन अलॉट हो गई। लेकिन परिवार ने रोहतक से आठ किलोमीटर दूर बनियानी गाँव में बसने का फैसला लिया और मदीना की जमीन बेच कर यहीं पर ज़मीन खरीद ली। यह साल था 1958, पिता खेती बाड़ी कर परिवार का पालन पोषण करने में जुट गये। .मनोहर जब छह साल के हुए तो उनके पिता ने उनका स्कूल में दाखिल करवा दिया।
सात भाई बहनों में सबसे बड़े होने के नाते मनोहर लाल के ऊपर ज्यादा जिम्मेदारी थी। होश सम्भालते ही वे खेती के काम में पिता का सहयोग करने लगे। मनोहर लाल खेतों का काम भी काफी मेहनत से करते थे। स्कूल जाने से पहले रोज तड़के चार बजे उठकर खेतों में जाना और सब्जियां तोड़कर अपनी साइकिल पर मंडी पहुंचना, उनका रोज़ का काम था।
तामाम मुश्किलात के बावजूद मनोहर ने दसवीं पास कर ली। इतनी पढ़ाई करने वाले परिवार के वे पहले सदस्य बने। .इस के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला किया। लेकिन परिवार के माली हालात इसके आड़े आ रहे थे। पिता हरबंस लाल चाहते थे कि मनोहर लाल पढ़ाई छोड़ कर खेतीबाड़ी पर ध्यान दें। लेकिन मनोहर पढना चाहते थे , इसलिए मां शांति देवी से पैसे लेकर उन्होंने रोहतक के पंडित नेकीराम शर्मा गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिला ले लिया और मेडिकल की पढ़ाई शुरू कर दी। इसके बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए मनोहर लाल अपने रिश्तेदारों के पास दिल्ली आ गए। यहां अपने गुजारे और पढ़ाई के खर्च के लिए वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। इस दौरान उन्होंने परिवार से रुपये उधार लेकर सदर बाजार में कपड़े बेचने का काम भी शुरू कर दिया। साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने लगे। दुकान से मुनाफा कमाकर न केवल उन्होंने परिवार से उधार लिये पैसे लौटा दिए बल्कि छोटी बहन की शादी भी कर दी। हां! इन सब के बीच उनका डॉक्टर बनने का सपना कहीं पीछे छूट गया।
25-26 वर्ष की उम्र होने पर परिवार के लोग मनोहर लाल पर शादी करने का दबाव बनाने लगे। लेकिन उन्होंने देश की सेवा करने की बात कहते हुए शादी करने से इनकार कर दिया।
1977 में स्वयंसेवक के रूप में मनोहर लाल आरएसएस के साथ जुड़ गए। वर्ष 1979 में उन्हें इलाहाबाद में हुए विश्व हिदू परिषद के समागम में जाने का मौका मिला, जहां वे अनेक संतों और संघ के प्रचारकों से मिले। वर्ष 1980 में मनोहर लाल ने अजीवन आरएसएस से जुड़ने और शादी न करने का फैसला अपने परिवार को सुना दिया। उनके इस फैसले का परिवार में काफी विरोध भी हुआ। लेकिन उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला।
आरएसएस के प्रचारक के रूप में मनोहर लाल ने हरियाणा के अलग अलग हिस्सों में जाकर खूब मेहनत के साथ काम किया। इतना ही नहीं, देश के किसी हिस्से में आपदा होने पर वे तुरंत अपनी टीम के साथ मदद के लिए पहुंच जाते। उनकी मेहनत और आम जन के साथ उनके लगाव को देखते हुए आरएसएस ने उन्हें सक्रिय राजनीति के क्षेत्र में मौका देने का फैसला किया। इस तरह 14 वर्षों तक आरएसएस के लिए काम करने के बाद वर्ष 1994 में वे बीजेपी में शामिल हो गए। मनोहर जी को हरियाणा बीजेपी में संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई, जहां उन्होंने राजनीतिक सूझ बूझ का भरपूर कौशल दिखाया। इस दौैरान उन्होंने गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ सहित देश के अलग अलग हिस्सों में बीजेपी की मजबूती के लिए खूब काम किया।
वर्ष 1996 में बीजेपी ने बंसीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा विकास पार्टी को प्रदेश में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया। बाद में मनोहर लाल ने देखा कि सरकार अलोकप्रिय हो रही है और गठनबंधन बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है, तो उन्होंने हाईकमान को समर्थन वापिस लेने का सुझाव दिया, जिसे मानकर भाजपा ने बंसीलाल सरकार से समर्थन वापिस ले लिया। इसके बाद बीजेपी ने ओमप्रकाश चौटाला की सरकार को बाहर से समर्थन दिया। इनेलो के साथ हुए इस गठबंधन ने 1999 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी दस सीटें जीत ली।
वर्ष 2002 में मनोहर लाल ने जम्मू कश्मीर में बीजेपी की मजबूती के लिए काफी काम किया। बीजेपी के संगठन मंत्री के रूप में मनोहर लाल की छवि एक योग्य और सख्त प्रशासक के साथ साथ एक ऐसे रणनीतिकार की बनी जो हरियाणा की सियासत की एक एक रग को पहचानता है। उनकी इन खासियतों को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने मनोहर लाल को गुजरात के कच्छ जिले में चुनाव प्रबंधन के लिए बुलाया, जहां बीजेपी को छह में से तीन सीटें मिली। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोहर लाल को नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के 50 वार्डो का प्रभारी बनाया।
मनोहर लाल की ऐसी तमाम उपलब्धियों को देखते हुए आखिरकार पार्टी ने उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंप दी। हरियाणा की कमान सम्भालने के बाद उन्होंने जनता को जरा भी निराश नहीं किया। पिछले नौ सालों से मनोहर लाल सरकार न केवल भ्रष्टाचार पर लगातार चोट पहुंचा रही है बल्कि अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक उसका भी हक पहुंचा रहे है।
मुख्य मंत्री बनने के बाद का मनोहर लाल खट्टर का जीवन खुली किताब की तरह पूरी तरह सार्वजिनक है, जिसे सुनाना-बताना महज़ एक औपचारिकता होगा।