हुड्डा ही क्यों हैं कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के हकदार?
क्यों मुख्यमंत्री की रेस में पीछे रह गए तमाम दावेदार?
क्यों बीजेपी के सामने नतमस्तक हो गए सारे उम्मीदवार?
बीजेपी में जाने के बाद किस-किस नेता का हो चुका है बंटाधार?
आज की इस रिपोर्ट में आपको इन तमाम सवालों के जवाब देंगे। इन सवालों के जवाब अब साफ और स्पष्ट नज़र आने लगे हैं। क्योंकि आदमपुर उपचुनाव के नतीजों में भले ही बीजेपी को जीत मिली हो लेकिन कांग्रेस को 52000 वोट मिलने के बाद अब ये साफ हो गया है कि अब आने वाले 2024 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला सीधे कांग्रेस से होगा। और कांग्रेस में भी सीधे भूपेंद्र सिंह हुड्डा से। यहीं वजह है कि आज की तारीख में पूरी बीजेपी, जेजेपी और इनेलो के निशाने पर सिर्फ हुड्डा ही नजर आ रहे हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस और दूसरे दलों में सीएम बनने की चाह रखने वाले ज्यादातर नेता आज बीजेपी के सामने नतमस्तक हैं। सिर्फ हुड्डा ही इकलौते ऐसे नेता बचे हैं जो बीजेपी को चुनौती दे रहे हैं। हालांकि हुड्डा को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी ने तमाम वो हथकंडे अपनाए जो बाकी नेताओं पर काम कर गए।
वो चाहे मुख्यमंत्री पद का लालच हो, बेटे को केंद्र में मंत्री बनाने की पेशकश हो या जांच एजेंसियों के चंगुल से छुटकारा हो। बीजेपी ने सत्ता में आते ही हुड्डा पर कई केस किए। हालांकि उनके खिलाफ 8 साल में अबतक एक भी आरोप साबित नहीं हो पाया। लेकिन जांच ऐजेंसियों का डर ऐसा है कि बड़े-बड़े धुरंधर उसके सामने टूट चुके हैं।
हरियाणा मे ताजा उदहारणा कुलदीप बिश्नोई का है। खुद को सीएम पद का दावेदार मानने वाले कुलदीप बिश्नोई पर जैसे ईडी, इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों का शिकंजा कसा तो मुख्यमंत्री बनने के सपने को आग के हवाले करके वो फौरन बीजेपी में शामिल हो गए। सीएम पद का सपना देखने वाले बिश्नोई आदमपुर में खुद के बेटे को महज विधायक बनाने के लिए खाक छानते दिखाई दिये।
इससे पहले चौधरी बीरेंद्र सिंह भी खुद को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार मानते थे। लेकिन 5 साल विपक्ष में रहते हुए उन्होंने भी हिम्मत हार दी। आज बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री की रेस तो छोड़िए, बीजेपी के ऐसे नेताओं की लिस्ट में शामिल हो गए हैं जिनकी पार्टी में कोई पूछ नहीं है।
राव इंद्रजीत सिंह कभी कांग्रेस के फायरब्रांड नेता माने जाते थे। खुद को दक्षिण हरियाणा की राजनीति का सूत्रधार बताने वाले राव इंद्रजीत सिंह दक्षिण हरियाणा में खुद को सीएम पद की रेस में सबसे अव्वल बताते थे। लेकिन जैसे ही वो 2014 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए तो मुख्यमंत्री पद की रेस से भी आउट हो गए।
कांग्रेस में रहते हुए अशोक तंवर भी खुद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करते थे। लेकिन कांग्रेस छोड़ने के बाद तंवर का करियर ऐसे गोते खाने लगा कि आज तक नहीं संभला। चुनाव में वो कभी जेजेपी को समर्थन करते नजर आए, कभी इनेलो को। कभी उन्होंने खुद का अलग मोर्चा बनाया, कभी टीएमसी ज्वाइन की तो कभी आम आदमी पार्टी। एक जमाने में खुद को मुख्यमंत्री मानकर चलने वाले तंवर की दुकान में आज विधायक और सांसद तो छोड़िए, पार्षद या सरपंच बनने लायक सामान भी नहीं बचा है। आदमपुर में आप पार्टी ने तंवर की सिफारिश पर सतेंद्र सिंह को टिकट दिया तो नतीजा सबके सामने है।
रोहतक से सांसद अरविंद शर्मा भी एक जमाने में सीएम बनने की हसरत पालने लगे थे। इसी चाह में कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हुए। मायावती ने उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित किया लेकिन जनाब विधायक तक नहीं बन पाए। बीजेपी में आज अरविंद शर्मा की हालत रोहतक से पूर्व विधायक मनीष ग्रोवर से पतली है। एक पूर्व विधायक ने अरविंद शर्मा की बीजेपी में मिट्टी पलीत कर रखी है।
बात जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला की करें तो उन्होंने भी खुद को जनता के सामने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था। लेकिन दुष्यंत ने भी खट्टर का नेतृत्व स्वीकार करके खुद के दावे पर पूर्ण विराम लगा लिया। अब दुष्यंत चौटाला और जेजेपी मनोहर लाल खट्टर को ही शानदार मुख्यमंत्री मानते हैं। अजय चौटाला परिवार अब दुष्यंत की बजाए खट्टर को मजबूत करने में जुटा हुआ है।
हलोपा पार्टी के एकमात्र विधायक गोपाल कांडा भी कभी सीएम बनने के सपने के साथ हरियाणा लोकहित पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरे थे। गीतिका शर्मा हत्याकांड में खूब बदनाम हुए कांडा से बीजेपी भी थोड़ी दूरी बनाने की कोशिश करती है। आज कांडा खुद की दावेदारी को छोड़कर बीजेपी और खट्टर का गुणगान करते रहते हैं।
विनोद शर्मा भी कांग्रेस में सीएम बनना चाहते थे। अब वो लंबे समय से बीजेपी में एंट्री की कोशिशों में लगे हैं। लेकिन बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री तो छोड़िए एक कार्यकर्ता बनाने को भी तैयार नहीं है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो हरियाणा में जितने भी नेता मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, बीजेपी ने सभी को उनकी औकात दिखा दी। लगभग सभी नेताओं ने बीजेपी में शामिल होकर या उसे समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनने की चाह को तिलांजली दे दी। कोई जांच एजेंसियों के डर से, तो कोई विपक्ष में बैठने के डर से, तो कोई अपने बेटे-बेटी का करियर बनाने के लिए, तो कोई सत्ता की मलाई खाने के लिए बीजेपी की शरण में चला गया। आज पूरे प्रदेश में सिर्फ भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही ऐसे नेता हैं जो बीजेपी के सामने मजबूती से डटे हुए हैं।