गुड़गांव। हरियाणा में संगठन को मजबूती देने की दिशा में कांग्रेस पार्टी ने अहम कदम उठाया है। गुजरात मॉडल की तर्ज पर कांग्रेस ने फैसला लिया है कि हरियाणा और मध्यप्रदेश में जिलाध्यक्ष बनने वाले नेता विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, जब तक कि वे एक साल पहले अपने पद से इस्तीफा न दे दें।
🔶 जुलाई में होंगे दो नए जिलाध्यक्ष नियुक्त
पार्टी ने एक महीने तक ब्लॉक स्तर पर कार्यकर्ताओं और जनता से फीडबैक लेने के बाद 12 दावेदारों की सूची तैयार कर ली है, जिसे AICC को भेजा गया है। उम्मीद है कि जुलाई माह में कांग्रेस दो नए जिलाध्यक्ष और चार कार्यकारी जिलाध्यक्ष नियुक्त करेगी।
🔶 ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के लिए होंगे अलग जिलाध्यक्ष
कांग्रेस की रणनीति के अनुसार, हर जिले में:
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एक ग्रामीण जिलाध्यक्ष
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एक शहरी जिलाध्यक्ष
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दोनों के लिए दो-दो कार्यकारी जिलाध्यक्ष
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इसके अलावा दो जिलों पर एक प्रदेश स्तर का पदाधिकारी भी नियुक्त किया जाएगा।
🔶 गुजरात मॉडल की सफलता से प्रेरणा
कांग्रेस नेतृत्व ने गुजरात में सफल संगठनात्मक प्रयोग के बाद हरियाणा और एमपी में यह शर्त लागू करने का निर्णय लिया। इस कदम का उद्देश्य संगठन और चुनावी राजनीति को अलग रखना है, ताकि संगठनात्मक पदों पर केवल समर्पित और निष्कलंक लोग ही नियुक्त हो सकें।
🔶 जातीय संतुलन का भी रखा जाएगा ध्यान
जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जातीय समीकरण का भी खास ध्यान रखा जा रहा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, समाज के सभी प्रमुख वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की जा रही है।
🗣 कांग्रेस नेता बोले…
प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष जितेंद्र भारद्वाज ने बताया,
“कांग्रेस ने तय किया है कि जो भी नेता संगठन में जिलाध्यक्ष बनते हैं, वे तत्काल चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। अगर कोई चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे एक साल पहले पद से इस्तीफा देना होगा।”
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