बहादुरगढ़ – हरियाणा के बहादुरगढ़ में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक मृतक के नाम पर 25 साल बाद रजिस्ट्री कर दी गई, जबकि असली वारिस अपने हक के लिए दर-दर भटक रहा था।
कैसे हुआ 25 साल पुराने मृतक के नाम से प्लॉट की रजिस्ट्री?
फ्रेंड्स कॉलोनी, गली नंबर-5 में स्थित 190 गज का प्लॉट 1987 में श्रीराम पुत्र देवतराम ने खरीदा था। 2 सितंबर 1987 को प्लॉट का इंतकाल उनके नाम दर्ज हो गया। श्रीराम अविवाहित थे और अपने भतीजे प्रेमचंद के साथ रहते थे। जुलाई 1999 में उन्होंने अपने भतीजे के बेटे ललित मोहन के नाम वसीयत कर दी। इसके कुछ महीनों बाद 9 अक्टूबर 1999 को श्रीराम का निधन हो गया।
चूंकि वसीयत नोटरी से अटेस्टेड थी, इसलिए इसे कानूनी मान्यता दिलाने के लिए ललित मोहन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। दिसंबर 2024 में कोर्ट ने ललित मोहन के पक्ष में डिक्री जारी कर दी। इसके बाद 18 फरवरी 2025 को ललित मोहन ने तहसील में इंतकाल दर्ज करवाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया, जिसे तहसीलदार ने रजिस्ट्रेशन फीस के बहाने नामंजूर कर दिया।
20 दिन बाद हुआ बड़ा फ्रॉड
इसी बीच, 10 मार्च 2025 को अचानक 25 साल पहले मृत हो चुके श्रीराम की “हाजिरी” लगाकर उसी प्लॉट की रजिस्ट्री दिल्ली निवासी हर्षपाल के नाम कर दी गई। इस रजिस्ट्री के गवाह सोनू और नम्बरदार हवासिंह थे।
नगर परिषद की लापरवाही से आसान हुआ फर्जीवाड़ा
मामले की जांच में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई कि नगर परिषद में दर्ज प्रॉपर्टी आईडी में श्रीराम का नाम तो मालिक के तौर पर मौजूद था, लेकिन मोबाइल नंबर किसी और व्यक्ति का था।
14 फरवरी को ललित मोहन ने सही मोबाइल नंबर दर्ज करवाने के लिए समाधान शिविर में आवेदन दिया, लेकिन नगर परिषद ने इसे विवादित बताते हुए 19 फरवरी को खारिज कर दिया। बाद में, इसी गलत मोबाइल नंबर का इस्तेमाल कर प्लॉट की एनओसी निकाली गई और 10 मार्च को रजिस्ट्री कर दी गई।
जांच और कार्रवाई के निर्देश
मामले का खुलासा होते ही पूर्व नगर पार्षद वजीर सिंह राठी ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की। वहीं, एसडीएम ने तहसील अधिकारियों को दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, फर्जी तरीके से की गई रजिस्ट्री को रद्द कर दिया गया है।
प्रशासनिक लापरवाही या सुनियोजित साजिश?
अगर समय रहते तहसीलदार ने इंतकाल दर्ज कर दिया होता और नगर परिषद ने सही मोबाइल नंबर अपडेट कर दिया होता, तो इस बड़े फर्जीवाड़े को रोका जा सकता था। इस मामले ने सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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