हरियाणा और पंजाब के बीच लंबे समय से जारी जल विवाद में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। भाखड़ा नांगल व्यास बोर्ड (BBMB) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि पंजाब सरकार डैम के संचालन में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप नहीं कर सकती और वहां तैनात पुलिस बल को दैनिक कार्यों से हटाना होगा।
📌 कोर्ट का स्पष्ट निर्देश: संचालन से दूर रहे पंजाब पुलिस
चीफ जस्टिस शीलू नागू की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पंजाब पुलिस डैम और लोहड़ कंट्रोल रूम स्थित जल नियंत्रण कार्यालयों के संचालन में शामिल नहीं हो सकती। कोर्ट ने 2 मई को केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में पारित आदेशों के अक्षरश: पालन का निर्देश दिया।
📌 सुरक्षा की अनुमति, हस्तक्षेप नहीं
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पंजाब सरकार को सुरक्षा कारणों से बल तैनात करना है तो वह कर सकती है, लेकिन इसका उपयोग सिर्फ सुरक्षा तक सीमित होगा। किसी भी स्थिति में ऑपरेशनल नियंत्रण में कोई दखल नहीं दिया जाएगा।
📌 BBMB की दलीलें और याचिका
BBMB की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि पंजाब पुलिस ने डैम की ऑपरेशनल यूनिट्स पर कब्जा कर लिया है, जिससे पूरे सिस्टम की निष्पक्षता खतरे में है। उन्होंने कहा कि यह डैम केवल हरियाणा ही नहीं, बल्कि दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्यों की भी जीवनरेखा है। वकील ने AAP कार्यकर्ताओं की मौजूदगी को भी डैम संचालन में अनुचित हस्तक्षेप बताया।
📌 पहले भी दाखिल हो चुकी हैं याचिकाएं
इस विवाद को लेकर पहले भी तीन याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की जा चुकी हैं। इनमें से दो याचिकाएं एडवोकेट रविंद्र ढुल और फतेहाबाद ग्राम पंचायत की ओर से थीं, जिनमें पंजाब पुलिस को हटाने और हरियाणा के लिए पर्याप्त पानी की मांग की गई थी। हरियाणा ने BBMB की पिछली बैठक में 8500 क्यूसेक पानी की मांग की थी।
📌 सियासत गरमाई, बयानबाजी तेज
राजनीतिक मोर्चे पर भी यह विवाद गर्मा गया है।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा के विशेष सत्र में कहा कि “हरियाणा को जो पानी अभी मिल रहा है, वह भी भविष्य में नहीं मिलेगा।”
वहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने इस बयान को संविधान विरोधी और संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, “BBMB एक केंद्रीय निकाय है और इसके संचालन में किसी राज्य सरकार की दखलअंदाजी संविधान और न्यायालय दोनों के खिलाफ है।”
⚖️ न्यायिक और संवैधानिक महत्व
इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केंद्रीय निकायों की कार्यप्रणाली में राज्यों का हस्तक्षेप संघीय व्यवस्था के लिए घातक है। यह आदेश न केवल BBMB जैसे संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा करता है, बल्कि जल संकट से जूझ रहे राज्यों के अधिकारों को भी संवैधानिक रूप से सुरक्षित करता है।
हाईकोर्ट का यह निर्णय आने वाले समय में पंजाब-हरियाणा जल विवाद की दिशा तय कर सकता है। राजनीतिक गलियारों में जहां बयानबाजी तेज हो गई है, वहीं अदालत का हस्तक्षेप यह संकेत देता है कि संविधान के भीतर रहकर ही समस्याओं का समाधान संभव है। अब यह देखना होगा कि पंजाब सरकार अदालत के आदेशों का किस हद तक पालन करती है और क्या केंद्र सरकार इस विवाद के समाधान की दिशा में कोई ठोस पहल करती है।
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