महेंद्रगढ़ (हरियाणा)। फसलों की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेष यानी पराली को जलाना न केवल मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इससे वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। इस गंभीर विषय को लेकर महेंद्रगढ़ जिले के उपायुक्त डॉ. विवेक भारती ने किसानों के लिए एक अहम एडवाइजरी जारी की है।
उपायुक्त ने किसानों से अपील की है कि वे रबी की फसल की कटाई के बाद पराली को जलाने के बजाय उसे खेत में ही मिला दें और इसके बाद गहरी जुताई करवाएं। इससे मिट्टी में मौजूद उपयोगी बैक्टीरिया और कार्बनिक तत्वों की मात्रा बढ़ेगी, जिससे खेत की उर्वरा शक्ति में इजाफा होगा।
पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई
डॉ. विवेक भारती ने चेतावनी दी कि यदि कोई किसान पराली जलाते हुए पाया जाता है तो उसके खिलाफ वायु एवं प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981 के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस अधिनियम के अंतर्गत न केवल जुर्माना वसूला जाएगा, बल्कि सजा का प्रावधान भी है। उन्होंने बताया कि पराली जलाने से खेतों में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वायुमंडल में मिलती हैं, जिससे वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ सकता है।
उर्वरता बढ़ाने के लिए अपनाएं ये तकनीकें
डीसी ने बताया कि किसान कटाई के बाद बची पराली को खेतों में मिलाकर, आधुनिक कृषि यंत्रों से गहरी जुताई करवाएं। इससे पराली सड़कर जैविक खाद में बदल जाएगी, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होगा और उत्पादन भी बढ़ेगा।
सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए कई प्रकार की मशीनों पर सब्सिडी भी दे रही है। इसमें सुपर सीडर, जीरो टिलेज मशीन, स्ट्रा चॉपर और हैप्पी सीडर जैसी मशीनें शामिल हैं। इन उपकरणों की मदद से किसान पराली को जलाए बिना ही उसका उचित प्रबंधन कर सकते हैं।
किसानों से सीधी अपील
डीसी डॉ. विवेक भारती ने कहा कि किसान पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ अपने खेतों की उत्पादकता भी बढ़ा सकते हैं। जरूरत है तो बस थोड़े से जागरूक और जिम्मेदार बनने की। पराली को आग के हवाले करने के बजाय उसे खेतों की ताकत में बदलें।