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1915 में राष्ट्रपति बन गए थे “राजा महेंद्र सिंह”- जींद से रहा उनका खास रिश्ता, मोदी उनके नाम पर बना रहे हैं यूनिवर्सिटी

"Raja Mahendra Singh"

अलख हरियाणा ( डॉ अनुज नरवाल रोहतकी ) || उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अलीगढ़ दौरा और राजा महेंद्र सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी का शिलान्यास करना भले ही मोदी द्वारा किसान आंदोलन के चलते नाराज जाटों को अपने पाले में करने की कोशिश भर हो। लेकिन उस शख्स के बारे में आज की पीढ़ी को जानना बेहद जरूरी है जिसके नाम से मोदी-योगी सरकार स्टेट यूनिवर्सिटी बनाने जा रही है आखिर वो “राजा महेंद्र प्रताप सिंह” कौन थे ? उनका हरियाणा के जींद से क्या था रिश्ता ? देश के लिए आखिर उनकी क्या भूमिका थी ?

राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी यूपी के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा थे। जाट परिवार से ताल्लुक रखने एक जमाने में निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति बन गए थे और प्रधानमंत्री उन्होंने मोहम्मद बरकतुल्लाह भोपाली को बनाया था। घटना पहले विश्वयुद्ध के दौरान की है जब उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान जाकर उन्होंने एक दिसंबर, 1915 को भारत की पहली निर्वासित सरकार बना दी थी । इसका अर्थ था कि अंग्रेज़ों के शासन के दौरान स्वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा। ऐसा ही काम बाद में सुभाष चंद्र बोस ने किया आज़ाद हिन्द फ़ौज ( 1942 ) स्थापना कर किया था। उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेताओं तक उनके काम के चर्चे पहुंच चुके थे। इसका अंदाज़ा महेंद्र प्रताप सिंह पर प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ में महात्मा गांधी से उनके पत्राचार से होता है।

गांधी ने महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में कहा था, “राजा महेंद्र प्रताप के लिए 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था. उससे पहले भी उनकी ख़्याति का हाल अफ़्रीका में मेरे पास आ गया था। उनका पत्र व्यवहार मुझसे होता रहा है जिससे मैं उन्हें अच्छी तरह से जान सका हूं. उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है.”

राजा महेंद्र प्रताप सिंह आज़ादी के बाद राजनीति में भी सक्रिय रहे। 32 साल तक देश से बाहर रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भारत को आज़ाद कराने की कोशिशों के लिए जर्मनी, रूस और जापान जैसे देशों से मदद मांगी। हालांकि वे उसमें कामयाब नहीं हुए। कांग्रेस की सरकारों में उनको कोई ज्यादा तरजीह नहीं मिलीं। 1957 में वे मथुरा से लोकसभा चुनाव आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़े इस चुनाव में इस सीट से जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनावी मैदान में थे लेकिन जीत राजा महेंद्र प्रताप सिंह की हुई। उस चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने कांग्रेस के चौधरी दिगंबर सिंह को क़रीब 30 हज़ार वोटों से हराया था।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह न तो सियासी तौर और न ही जाटों में ज्यादा लोकप्रिय रहे बावजूद इसके वे बतौर समाजसेवी शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए लगातार धन संपदा दान देते रहे। राजा महेंद्र प्रताप ने वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना करवाई। साल 1962 में मथुरा लोकसभा से चुनाव हारने के बाद वे सार्वजनिक जीवन में बहुत सक्रिय नहीं रहे और उनका निधन 29 अप्रैल, 1979 को हुआ था।

हरियाणा के जींद से था खास रिश्ता

साल था 1901 जब राजा प्रताप सिंह की उम्र थी 14 साल , हरियाणा के जींद रियासत के नरेश महाराज रणवीरसिंह जी की छोटी बहिन बलवीर कौर से उनकी सगाई बड़े समारोह से वृन्दावन में पक्की हो गई और विवाह की तैयारी होने लगी थी। परन्तु जिस दिन राजा साहब का तेल चढ़ना था, उसी दिन उनके पिता राजा बहादुर घनश्यामसिंह का देहांत हो गया। इसके विवाह को स्थगित करने पर विचार होने लगा, लेकिन क्योंकि राजा महेन्द्र प्रताप गोद आ गये हैं, अत: देहरी बदल जाने के कारण अब विवाह नहीं रोका जा सकता था। राजा महेन्द्र प्रताप का विवाह जींद में बड़ी शान से हुआ। दो स्पेशल रेल गाड़ियों में बारात मथुरा स्टेशन से जींद गई। इस विवाह पर जींद नरेश ने तीन लाख पिचहत्तर हज़ार रुपये व्यय किए थे। यह उस सस्ते युग का व्यय है, जब 1 रुपये का 1 मन गेहूँ आता था।

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