हरियाणा। चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यायलय, जींद में हुई भर्तियों को लेकर हरियाणा उच्चतर शिक्षा विभाग का एक पत्र सोशल मीडिया में प्रसारित हो रहा है। इस पत्र में चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यायलय, जींद में हुई भर्तियों में पूर्व कुलपति, पूर्व रजिस्ट्रार व स्क्रूटिनी कमेटी के सदस्यों पर FIR करवाने बारे उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा ने विश्वविद्यायलय से निवेदन किया है। इस मामले में एक बात सामने आई है की भर्तियां तो पूर्णतः नियमानुसार हुई हैं परन्तु शिकायतकर्ता जगदीप कौशिक निवासी जींद जो स्वयं भी भर्ती मंस शामिल हुआ था परन्तु उसका चयन अनुभव प्रमाण-पत्र फर्जी होने के कारण नहीं हो पाया था। इस मामले में रोज नए नए खुलासे हो रहे हैं जिनमें शिकायतकर्ता, जाँच एजेंसियों और उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत का गौरखधंधा सामने आ रहा है।
मामले में रौचक तथ्य है कि विश्वविद्यालय से प्राप्त RTI सुचना अनुसार शिकायतकर्ता जगदीप कौशिक ने 5 मार्च 2003 से हरियाणा कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन किनाना जींद में क्लर्क के पद पर अनुभव प्रमाण पत्र लगाया है जबकि कॉलेज 2004 से खुला है। इसी प्रकार शिकायतकर्ता जगदीप कौशिक ने 2015 में इसी संस्थान में डिप्टी सुपरिटेंडेंट पद का अनुभव प्रमाण-पत्र लगाया है और 2016 में सुपरिटेंडेंट पद का अनुभव प्रमाण-पत्र जबकि विश्वविद्यालय के पत्र क्रमांक CBA/A-38/2013/21680 के अनुसार वह 2013 से इसी हरियाणा कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन किनाना जींद में बतौर अध्यापक कार्य कर रहा था और बाकायदा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने इसे अध्यापक के तौर पर अप्प्रूव किया था । चूँकि जिस कॉलेज से अनुभव प्रमाण-पत्र बना है वह चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यायलय, जींद के क्षेत्राधिकार में आता है और इसी से सम्बद्ध है। इस प्रकार फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र का मामला विश्वविद्यालय के संज्ञान में होने के बावजूद भी फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र जारी करने वाले कॉलेज और इसके आधार पर भर्ती शामिल होने वाले व शिकायतकर्ता जगदीप कौशिक पुत्र श्री ईश्वर दास कौशिक पर कोई कार्यवाही नहीं होना विश्वविद्यालय के अंदरूनी लोगों की मिलीभगत या किसी बड़े राजनितिक दबाव को इंगित करता है।
उच्चतर शिक्षा विभाग ने उक्त निवेदन इस आधार पर किया है कि विज्ञापन में केवल डिप्टी सुप्रीटेंडेंट के पद पर 3 वर्ष का कार्यानुभव मांगा गया था जबकि सेक्रूटिनी कमेटी ने इससे उच्च पद पर कार्यानुभव वाले अभ्यर्थी को भी योग्य मानने की स्तुति कर दी थी। जबकि देखने में आया है कि विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल कि 8वीं बैठक के बिंदु 14 में समान या उच्च पद या वेतन वाले कार्यानुभव को मानने का अनुमोदन किया गया था। इसी तरह सुप्रीटेंडेंट की नियुक्ति कुलपति द्वारा नही की गई बल्कि भर्ती के लिफाफे एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल द्वारा आठवी बैठक में आइटम 24 के तहत खोले गए थे। गौर तलब है कि एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल कि उक्त बैठक जिसमे सुप्रीटेंडेंट की नियुक्ति की गई थी में राज्यपाल के प्रतिनिधि समेत वित्त विभाग व उच्च शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी मौजूद थे ।विजिलेंस विभाग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सेक्रूटिनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है की समकक्ष/उच्च पदों का अनुभव विश्वविद्यालय की गाइडलाइन्स के अनुसार सभी गैर शैक्षिक पदों की भर्तियों में माना गया था और परन्तु जाँच के दौरान विश्वविद्यालय ने इस आदेश की प्रति उपलब्ध नहीं करवाई। जबकि सच ये है की विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल (कार्यकारी परिषद्) की आठवीं बैठक की कार्यवाही के मिनट्स विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर 2016 से हीं उपलब्ध हैं जिसमे बिंदु 14 पर साफ लिखा है कि सभी सभी गैर शैक्षिक पदों की भर्तियों में समकक्ष/उच्च पदों/वेतन के अनुभव प्रमाणपत्र मानने बारे तत्कालीन कुलपति ने विश्वविद्यालय अधिनियम के सेक्शन 11(7) के तहत आदेश पारित किया था और एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल (कार्यकारी परिषद्) ने भी इसे अनुमोदित किया है । इस प्रकार विश्वविद्यालय द्वारा पारित नियम की प्रति जाँच अधिकारी को उपलब्ध नहीं करवाना और इसकी प्रति विश्वविद्याला की वेबसाइट पर (http://crsu.ac.in/wp-content/uploads/2021/05/Minutes_of_8th_meeting_of_Executive_Council.pdf) सार्वजानिक तौर पर उपलब्ध होने के बावजूद जाँच अधिकारी को नहीं मिलना दोनों हीं संदेह पैदा करतें हैं और स्क्रूटिनी कमिटी के खिलाफ किसी बड़े षड्यंत्र की और इशारा करता है।
मामले में यह भी ज्ञात हुआ है कि शिकायतकर्ता जगदीप कौशिक पुत्र ईश्वर दास कौशिक वासी जींद ने जिस कॉलेज का फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र लगाया है उस कॉलेज के संचालक का पुत्र विजिलेंस विभाग मुख्यालय पंचकूला में उच्च पद पर डेपूटेड है और मामले को मनमाफिक प्रभावित कर रहा है। इसी प्रकार इस फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र पर हस्ताक्षर करने वाला कॉलेज प्रिंसिपल को जाँच अधिकारी के स्टेनो का दामाद बताया जा रहा है।
मामले में गौरतलब है कि शिकायतकर्ता जगदीप कौशिक ने माननीय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर की थी जिसे न्यायालय ने 03/12/2021 के आदेश के तहत निरस्त कर दिया था और LPA No.: 97/2022 दायर की थी वह भी निरस्त हो चुकी है इसके अतिरिक्त किनाना (जींद) निवासी धीरेन्दर सैनी द्वारा उक्त भर्तियां की शिकायत महामहिम राज्यपाल महोदय से की गई थी जिसे महामहिम द्वारा पक्षकारों को सुनने के पश्चात आदेश संख्या RAJBHAWAN/HRB/UA/2017/1879 दिनांक 06 मार्च 2018 के तहत दाखिल दफ्तर कर दिया गया था। इस प्रकार न्यायलय से मामला निरस्त होने और महामहिम राज्यपाल द्वारा दफ्तर दाखिल होने के बावजूद विभाग की कार्यवाही किसी षड्यंत्र से काम नहीं लगती।
मामले में प्रमाण मिले हैं कि इस विश्वविद्यालय में प्रारम्भ से ही शिकायतकर्ताओं की एक फ़ौज कार्य कर रही है और जाँच एजेंसियों से मिली भगत करके तरह-तरह से विश्वविद्यालय के विकास को पटरी से उतारने और कुलपति पर दबाव बना कर अपने मनमाफिक कार्य करवाने के प्रयास करते रहते हैं।इस विश्वविद्यालय के भर्तियों को लेकर विजिलेंस इंस्पेक्टर देवीलाल, विजिलेंस के DIG हेमंत कलसन IPS व धीरज सेतीया IPS द्वारा पूर्व में टिपण्णी की जा चुकी है और उक्त तीनों ही अधिकारी अन्य संगीन मामलों में सलाखों के पीछे जेल जा चुके हैं जो यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि किस निम्न स्तर के जाँच अधिकारी विश्वविद्यालय के जाँच के नाम पर फर्जीवाड़ा कर चुके हैं।
कयास लगाए जा रहे है कि इस प्रकार उक्त पत्र के जारी करने से सरकार की जांच एजेंसियां ही संदेह के घेरे में आ गई है।