चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी भी पीएचडी शोधार्थी को केवल इस आधार पर डाक्टरेट की डिग्री देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसने साथ में पार्ट-टाइम ‘तबला’ डिप्लोमा किया हो। हाई कोर्ट ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) रोहतक की आपत्ति को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि छात्रों की शैक्षणिक प्रगति को मात्र तकनीकी कारणों से बाधित नहीं किया जाना चाहिए।
एमडीयू ने डिग्री देने से किया इनकार, कोर्ट ने दिया फैसला
यह मामला छात्र प्रदीप कुमार देशवाल से जुड़ा है, जिन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि एमडीयू रोहतक ने उन्हें पीएचडी डिग्री देने से इनकार कर दिया, जबकि थीसिस जमा करने के समय उन्हें अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) और आचरण प्रमाणपत्र भी प्रदान किया गया था। इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने पीएचडी के दौरान प्राप्त छात्रवृत्ति की धनराशि वापस लौटाने की शर्त थोप दी, जिससे छात्र बेहद परेशान था।
तबला डिप्लोमा बना विवाद की जड़
एमडीयू ने तर्क दिया कि पीएचडी के दौरान छात्र ने संगीत विभाग में तबला डिप्लोमा के लिए नामांकन लिया था, जबकि यह एक पूर्णकालिक कोर्स नहीं किया जा सकता। इस पर याचिकाकर्ता ने स्पष्ट किया कि यह डिप्लोमा केवल खाली समय में पार्ट-टाइम रूप से किया गया था और यह विश्वविद्यालय के नियमों के अंतर्गत आता है।
कोर्ट ने छात्रों के अधिकारों की रक्षा की
हाई कोर्ट के जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी की पीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा डिग्री न देना और छात्रवृत्ति वापस लेने की मांग करना पूरी तरह अनुचित और अन्यायपूर्ण है। कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता ने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया और उनका डिप्लोमा केवल शाम की कक्षाओं में हुआ था, जो कि विश्वविद्यालय के नियमों के तहत अनुमत है।
निष्कर्ष
हाई कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि छात्रों की शिक्षा और उनके व्यक्तिगत विकास में किसी भी तरह की बाधा नहीं डाली जानी चाहिए। यह निर्णय उन शोधार्थियों के लिए एक मिसाल बनेगा, जो अपनी शिक्षा के साथ अन्य क्षेत्रों में भी अपनी प्रतिभा को निखारना चाहते हैं।
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