ऐलनाबाद, अलख हरियाणा डॉट कॉम , डॉ अनुज नरवाल रोहतकी । किसान आंदोलन के चलते फजीहत झेल रहे हरियाणा के सत्तासीन गठबंधन ने आखिर ऐलनाबाद उपचुनाव के लिए हलोपा मुखिया गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को मैदान में उतारने का फैसला कर लिया है। बीजेपी जेजेपी गठबंधन का यह फैसला ऐसा लगा रहा है जैसे अधमरा सांप गोबिंद कांडा के गले में डाल दिया है। पिछले सात बरसो से हरियाणा में सत्तासीन बीजेपी और हाल के उनके सहयोगी दल जेजेपी के पास ऐलनाबाद चुनाव में उधार का उम्मीदवार इस ओर इशारा कर रहा है कि वो हार से डरे हुए हैं। सवाल ये पैदा हो रहा है कि क्या दोनों पार्टियों को अपने दलों में एक भी नेता ऐसा नहीं मिला जो ऐलनाबाद से उम्मीदवार बन सके।
आनन फानन में हलोपा मुखिया गोपाल कांडा के भाई को भाजपा ने भगवा पटका पहनाकर ऐलनाबाद की टिकट देकर चुनावी औपचारिकता पूरी कर दी । हम आपको बताते चले कि गोबिंद कांडा ने ऐलनाबाद की सियासत को अपनी पूरी जिंदगी का “एक” भी “मिनट” नहीं दिया होगा लेकिन सेंटिंग इतनी जबरदस्त की कि बीजेपी के ऐलान से पहले गठबंधन का खुद को उम्मीदवार बता दिया जिसके एक दिन बाद बीजेपी ने उनके नाम की घोषणा भी कर दी। यह घटनाक्रम दूसरी ओर भी इशारा कर रहां है कि कही टिकट लेने में कोई “खेला” या कोई सौदेबाजी तो नहीं हुई है ?
गौरतलब है कि बीजेपी ने जो उम्मीदवार उतारा है उनकी फैमिली पार्टी हलोपा को 2019 के विधानसभा चुनाव में ऐलनाबाद में लड़ने के लिए प्रत्याशी तक नहीं मिला था। गोबिंद कांडा ने 2014 में विधानसभा चुनाव लड़ा था तो मात्र धनबल के बुते 4000 मत लिए थे।
बीजेपी के लिए दिन रात पसीना बहाने वाले नेताओं की अनदेखी करके बिना “वजूद” के शख्स को टिकट देना बीजेपी की संस्कृति और कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है । न जनाधार है, न वोट बैंक है , न इलाके पर पकड़ ऐसे बिना किसी बैकग्राउंड वाले गोबिंद कांडा को टिकट देने के बाद प्रदेश में चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया है कि बिना किसी “बड़ी” सौदेबाजी के बेहद “कमजोर” शख्स को बीजेपी की टिकट कैसे मिल गई ?
बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का गोबिंद कांडा को टिकट देने के लिए जोर लगाना अपने आप में सवाल पैदा कर रहा है ? गोबिंद कांडा पर इतनी इनायत करम के बाद लग रहा है कि बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की नीयत ऐलनाबाद चुनाव जीतने की नहीं है। ऐलनाबाद उपचुनाव के लिए बीजेपी और जेजेपी के पास खुद का प्रत्याशी नहीं होना दोनों पार्टियों द्वारा नैतिक हार स्वीकार करने जैसा है। इन सबका मुख्य कारण तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा किसान आंदोलन है।