चंडीगढ़, हरियाणा को गर्मी के मौसम में बड़ा जल झटका लगा है। पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने भाखड़ा नहर से हरियाणा को मिलने वाले पानी की मात्रा को अचानक घटाकर 9500 क्यूसिक से सिर्फ 4000 क्यूसिक कर दिया है। यह कटौती पंजाब ने करीब 15 दिन पहले शुरू कर दी थी, जिसकी जानकारी अब सामने आई है। इससे प्रदेश में सिंचाई और पीने के पानी की गंभीर किल्लत पैदा होने की आशंका है।
सबसे ज्यादा असर इन जिलों में पड़ेगा
इस जल कटौती का सीधा असर हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, रोहतक और महेन्द्रगढ़ जैसे जिलों में देखने को मिल सकता है। इन क्षेत्रों में भूजल स्तर पहले ही गिरा हुआ है और पेयजल की निर्भरता भाखड़ा नहर पर ही है। किसानों की चिंता और बढ़ गई है, क्योंकि आगामी धान की बुआई और कपास की सिंचाई इसके बिना मुश्किल हो सकती है।
हरियाणा ने जताई आपत्ति, सैनी ने किया संपर्क
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से बात की है। सूत्रों के अनुसार, सैनी ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह निर्णय संविधान और समझौतों के खिलाफ है और हरियाणा को उसका निर्धारित पानी तत्काल दिया जाना चाहिए।
क्यों जरूरी है भाखड़ा नहर का पानी?
भाखड़ा नहर, जो सतलुज नदी पर स्थित भाखड़ा-नांगल बांध से निकलती है, हरियाणा और राजस्थान के लाखों किसानों की जीवनरेखा है। यह नहर सिंचाई के साथ-साथ पीने के पानी का भी प्रमुख स्रोत है। शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में पाइपलाइन व टैंकरों के माध्यम से यही पानी वितरित होता है।
1976 और 1981 के जल समझौते की पृष्ठभूमि
जल बंटवारे को लेकर भारत सरकार ने 1976 में अधिसूचना जारी कर हरियाणा को 3.5 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) पानी देने का निर्देश दिया था। इसके बाद 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत पंजाब को हरियाणा को यह पानी देना था।
हालांकि SYL (सतलुज-यमुना लिंक) नहर परियोजना अधूरी रही, परंतु भाखड़ा नहर के माध्यम से हरियाणा को अब तक औसतन 1.8 एमएएफ पानी मिलता रहा है।
पंजाब सरकार का तर्क और सियासत
पंजाब सरकार का तर्क है कि राज्य में स्वयं जल संकट है और वह हरियाणा को पानी देने में असमर्थ है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तर्क के पीछे राजनीतिक मंशा छिपी हो सकती है, विशेषकर तब जब दोनों राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें हैं।
कानूनी लड़ाई की संभावना
जल बंटवारे से जुड़ा यह मुद्दा पहले भी सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है। यदि पंजाब द्वारा जल आपूर्ति में कटौती जारी रहती है, तो हरियाणा सरकार न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है। यह मामला संघीय ढांचे और राज्यों के बीच संसाधन बंटवारे से जुड़ा होने के कारण संवेदनशील है।
जनजीवन पर असर: जल संकट की दस्तक
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह कटौती मई के अंत तक जारी रही तो हरियाणा में जलसंकट के हालात बन सकते हैं। जल टैंकरों की मांग बढ़ेगी, गांवों में पेयजल झगड़े हो सकते हैं और किसान आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं।
यह जल विवाद केवल राज्यों के बीच जल बंटवारे का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह कृषि, पेयजल, कानून और राजनीति — सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस का विषय बन सकता है और केंद्र सरकार को मध्यस्थता करनी पड़ सकती है।