Varanasi, सनातन धर्म में गंगा नदी को बेहद ही पवित्र माना जाता हैं, यहीं नहीं हिंदू धर्म के किसी भी पूजा अर्चना में गंगा नदी के पानी का विशेष महत्व होता है. कई त्यौहार ऐसे है जिनमें गंगा की पूजा की जाती है.
गंगा पवित्र है लेकिन बढ़ती आबादी के कारण नदी का पानी धूमिल हो रहा है यहां लोग जानवरों, इंसानों का शव गंगा में फेक देते है जिससे गंगा का पानी दुषित हो जाता है. लेकिन इस सफाई का कमान अब कछुओं ने संभाल लिया है. कई मंसाहारी कछुएं फेके हुए शव को अपना भोजन बना लेते है जिससे गंगा के पानी को कुछ राहत मिलती है.
बता दें कि वाराणसी के गंगा नदी को साफ करने में अब कछुए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.नदी में मौजूद मांसाहारी कछुए शव के अवशेषों को खा जाते हैं, जिसकी वजह से गंगा को साफ रखने में कछुए बड़ा योगदान कर रहे हैं.
जानकारी के अनुसार साल 1987 से गंगा में लगातार मांसाहारी कछुओं को छोड़ा जा रहा है. गंगा में इन कछुओं की संख्या अब सैकड़ों से बढ़ कर हजारों हो गई है. पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए कछुओं का योगदान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
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विश्व में कछुओं की 230 प्रजातियां हैं, लेकिन भारत में केवल 33 प्रजातियां ही पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश में केवल 13 प्रजाति के कछुए मौजूद हैं, जिनमें 7 को मांसाहारी प्रजाति के तौर पर चिन्हित किया गया है.
वाराणसी के सारनाथ स्थित वन्य जीव प्रभाग में इटावा और आगरा क्षेत्र से लाए गए कछुआ के अंडे के माध्यम से इनकी संख्या बढ़ाने पर काम हो रहा है. बीते एक दशक के भीतर 4636 कछुओं को गंगा नदी में छोड़ा जा चुका है. वहीं कछुआ की तस्करी करना या इनका शिकार वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधान के तहत अपराध इस श्रेणी में आता है.