जींद। जिला उपायुक्त कार्यालय में मंगलवार को समाधान शिविर के दौरान एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, जब जींद की शिवपुरी कॉलोनी के एक परिवार ने उपायुक्त को अर्जी देकर इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी। पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस छह महीने से उनके मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, जिससे वे बेहद परेशान हैं।
क्या है पूरा मामला?
शिवपुरी कॉलोनी निवासी मोहित ने 30 सितंबर 2024 को संदिग्ध परिस्थितियों में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मृतक के भाई सुरेंद्र के अनुसार, मोहित वीटा बूथ चलाने के साथ-साथ कबाड़ का काम भी करता था। 2022 में उनके बेटे अमित (सीनू) के जन्म के बाद से ही वह बीमार रहने लगा, जिसके इलाज के लिए हिसार के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज का खर्च अधिक होने के कारण मोहित ने जुलानी रोड की एक महिला से 10% ब्याज पर 8 लाख रुपये उधार लिए।
कर्ज चुकाने के लिए मोहित ने विभिन्न लोन कंपनियों और फाइनेंसरों से और पैसे उधार लिए। 30 सितंबर की शाम को फाइनेंसर सतीश मोहित के वीटा बूथ पर किस्त लेने पहुंचा, लेकिन मोहित ने कुछ समय की मांग की। सतीश ने साफ मना कर दिया और तुरंत पैसे लौटाने का दबाव बनाया। इसके बाद घर में भी उनके बीच कहासुनी हो गई। फाइनेंसर की धमकियों से परेशान होकर मोहित ने दुकान में जाकर फांसी लगा ली।
मोहित के सुसाइड नोट में इन लोगों का नाम
मोहित की जेब से बरामद सुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए परवेश सरोहा, शिलो, उज्जीवन कंपनी के अनिकेत, सचिन गोलू, सतीश, सुनील लाठर, अमित शाहपुर, पाला नर्सी को जिम्मेदार ठहराया था। पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया था, लेकिन परिवार का आरोप है कि छह महीने बाद भी जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है।
परिवार की पुलिस पर गंभीर आरोप
परिजनों का कहना है कि जांच अधिकारी न केवल कार्रवाई में लापरवाही बरत रहे हैं, बल्कि पीड़ितों को ही कह रहे हैं कि वे फाइनेंसरों के पैसे चुका दें। ऐसे में परिवार ने प्रशासन से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है, ताकि वे इस मानसिक प्रताड़ना से मुक्ति पा सकें।
पुलिस का बयान
थाना शहर प्रभारी इंस्पेक्टर मनीष कुमार का कहना है कि मामले की जांच जारी है और जांच पूरी होने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।
पूर्व एसपी की कार्यशैली को याद कर रहे लोग
शहर के लोगों का कहना है कि पूर्व एसपी सुमित कुमार (आईपीएस) के कार्यकाल में ऐसे मामलों पर तुरंत कार्रवाई की जाती थी, जिसके चलते फाइनेंसर अपने कार्यालय बंद कर फरार हो गए थे। लेकिन वर्तमान में पुलिस की भूमिका संदेहास्पद नजर आ रही है। 10% मासिक ब्याज पूरी तरह गैरकानूनी है और इन फाइनेंसरों के पास कोई वैध लाइसेंस भी नहीं है।
अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और पीड़ित परिवार को न्याय मिल पाता है या नहीं।