22 अप्रैल का दिन था। पहलगाम की वादियों में हिमांशी और उनके पति लेफ्टिनेंट विनय नरवाल कुछ पल सुकून के बिता रहे थे। तभी अचानक गोलियों की आवाज़ गूंजी। एक आतंकी ने सिर्फ एक पहचान के आधार पर विनय की जान ले ली – “ये भी मुस्लिम नहीं है”, यह कहकर उस आतंकी ने गोली चला दी।
हिमांशी के सामने उनका जीवन बिखर गया। लेकिन उन्होंने टूटकर बदले की आग नहीं जलाई, बल्कि शांति, इंसाफ और इंसानियत की मशाल उठाई।
🩸 जन्मदिन पर बलिदान को श्रद्धांजलि
30 अप्रैल को विनय का जन्मदिन था। इस बार केक नहीं कटा, मोमबत्तियां नहीं जलीं। करनाल में रक्तदान शिविर लगा। बहन सृष्टि बोलीं, “भाई की विचारधारा को आगे बढ़ाना है।” हिमांशी, परिवार और सैकड़ों लोग खून देने आए — शायद इसलिए कि किसी और का खून बहने से पहले किसी की जान बचाई जा सके।
✋ “कश्मीरियों या मुस्लिमों से नफरत मत करो”
हिमांशी की आवाज़ डगमगाई नहीं। उन्होंने स्पष्ट कहा – “हम उन लोगों को सजा चाहते हैं, जिन्होंने मारा है। लेकिन हम किसी धर्म, किसी समुदाय के खिलाफ नहीं हैं।“
उन्होंने कहा – “मुझे किसी से नफरत नहीं है। सिर्फ शांति चाहिए।” उनके ये शब्द सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं और लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं – क्या आतंक के जवाब में पूरे समाज को दोष देना ठीक है?
🕯️ “मैं वहीं बैठ गई थी…”
जब विनय की हत्या हुई, हिमांशी वहीं बैठ गईं। सदमे में, डर में, दर्द में। उन्होंने कहा – “मैंने चिल्लाकर सवाल किए, लेकिन वो आतंकी कुछ नहीं बोला और चला गया।“
पुलिस घंटा भर बाद पहुंची, मदद देर से मिली। “काश वहां हेलिकॉप्टर होता, काश फुल सिक्योरिटी होती” – इस “काश” में एक पत्नी का गुस्सा और सिस्टम पर सवाल छिपा है।
“विनय को सबसे बड़ा सम्मान मिलना चाहिए”
हिमांशी की एक और मांग है – विनय को देश में सबसे बड़ा सम्मान मिले। वो सिर्फ पति नहीं थे, एक सच्चे सैनिक थे, जिन्होंने आखिरी सांस तक वर्दी का फर्ज निभाया।
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