हरियाणा। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में बुधवार को आतंकियों और जवानों के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें दोनों ओर से ताबड़तोड़ गोलियां चली। इस मुठभेड़ में एक जवान और तीन अफसरों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त होने वालों में हरियाणा का लाल भी शामिल है।शहीद मेजर आशीष की शहादत का पता चलते ही पूरे हरियाणा में शोक पसरा हुआ है। उनका पार्थिव शरीर गुरूवार यानी आज दोपहर पानीपत में उनके पैतृक गांव बिंझौल में लाया जाएगा।
कश्मीर में अनंतनाग जिले के राजौरी में आतंकियों से मुठभेड़ में पानीपत के रहने वाले मेजर आशीष धौंचक बलिदान हो गए। शहीद आशीष धौंचक को गृह प्रवेश कार्यक्रम में 23 अक्टूबर को घर आना था। उसी दिन उनका जन्म दिन था।4 महीने पहले 2 मई को अर्बन एस्टेट में रहने वाले साले विपुल की शादी में छुट्टी लेकर घर आए थे। यहां वे 10 दिन रहे और इसके बाद वह ड्यूटी पर लौट गए।उनके मामा महावीर ने बताया कि 3 दिन पहले आशीष से फोन पर बात हुई। अगले महीने 23 अक्टूबर को आशीष छुट्टी लेकर टीडीआई में बन रहे नए मकान में गृह प्रवेश के लिए आने वाले थे। हालांकि इससे पहले ही आतंकियों के सर्च ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए। जिस घर में वह अपने जन्मदिन 23 अक्टूबर को गृह प्रवेश करने वाले थे, अब उसमें ही उनकी पार्थिव देह लाई जाएगी।
शहीद मेजर आशीष की शादी 15 नवंबर 2015 को जींद की रहने वाली ज्योति से हुई थी। उनका परिवार पहले पैतृक गांव बिंझौल में ही रहता था। हालांकि 2 साल पहले वह शहर में शिफ्ट हो गए थे।मेजर का सपना था कि अपने खुद के घर में रहें। इसके लिए उन्होंने टीडीआई सिटी में अपना नया घर बनवाया था।
मेजर आशीष 2 साल की बेटी वामिनी के पिता और 3 बहनों के इकलौते भाई थे। उनकी तीनों बहनें अंजू, सुमन और ममता शादीशुदा हैं। उनकी मां कमला गृहणी और पिता लालचंद एनएफएल से सेवामुक्त हुए हैं। उनके चाचा का बेटा विकास भी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट हैं। उनकी पोस्टिंग झांसी में है लेकिन आजकल वह पूना में ट्रेनिंग पर हैं।
शहीद आशीष ने केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई की। 12वीं के बाद उन्होंने बरवाला के कॉलेज से बीटेक इलेक्ट्रोनिक किया। जिसके बाद वह एमटेक करते हुए उनको एक साल पूरा हुआ था कि 25 साल की उम्र में वे 2012 में भारतीय सेना में बतौर लेफ्टिनेंट भर्ती हुए थे।इसके बाद वह बठिंडा, बारामूला और मेरठ में तैनात रहे और 2018 में प्रमोट होकर मेजर बन गए। ढाई साल पहले उन्हें मेरठ से राजौरी में पोस्टिंग मिली। जिसके बाद वह परिवार को साथ नहीं ले गए। उन्होंने पानीपत के सेक्टर 7 में मकान लिया और परिवार को यहां छोड़ दिया।